Shayari
न जाने क्यों मगर इंसान
न जाने क्यों मगर इंसान कुछ यूं करता हैमौत की तरफ दौड़ता है और जिंदगी से प्यार करता है
न जाने क्यों मगर इंसान कुछ यूं करता हैमौत की तरफ दौड़ता है और जिंदगी से प्यार करता है
छलावा ज़माने का अब मज़ाक लगता है,अपनों ने ही जब लूटा हमें तो बड़े से बड़ा लूटेरा भी अब बेचारा लगता है…
कि फिज़ूल जिया जो जितना भी जिया हमने,जब दुनिया के लिए जिया तो क्या ही जिया हमने।
सब कुछ सब के मुकद्दर मे नहीं होता हैँ कुछ कि झोली खालीपन से भरी होती हैँ