Shayari
न जाने क्यों मगर इंसान
न जाने क्यों मगर इंसान कुछ यूं करता हैमौत की तरफ दौड़ता है और जिंदगी से प्यार करता है
न जाने क्यों मगर इंसान कुछ यूं करता हैमौत की तरफ दौड़ता है और जिंदगी से प्यार करता है
कि कौन कमबख्त कहता है कि बड़ी सुकून की नींद आ जाती है रात मेंकाली से काली रात भी नाकाम हो जाती है खाली पेट सोने की कोशिश में
कि फिज़ूल जिया जो जितना भी जिया हमने,जब दुनिया के लिए जिया तो क्या ही जिया हमने।
ज़माने कि शोर से दूर वो जो तेरे घर हैँ मुझे वहां सुकून मिलता हैँजैसे दरिया के नाविक को शीतल चांदनी से बिछे तालाब मे आराम मिलता हैँ
सब कुछ सब के मुकद्दर मे नहीं होता हैँ कुछ कि झोली खालीपन से भरी होती हैँ
“It is not the mere good in you that you’re been loved, It is the good of they who love you.” – Kunj R. Atha
खुद ही बाँट लिया खुद को इतना लोगो मे, कि खुद ही ना बच्चे खुदके लिए