Shayari
कि फिज़ूल जिया जो
कि फिज़ूल जिया जो जितना भी जिया हमने,जब दुनिया के लिए जिया तो क्या ही जिया हमने।
कि फिज़ूल जिया जो जितना भी जिया हमने,जब दुनिया के लिए जिया तो क्या ही जिया हमने।
वक़्त गुज़रे बहोत सी यादें बन गयी यादो कि याद मे किसी कि याद आ गयी… जिनको याद करते थे रात दिन,आज मुद्दतों बाद उनकी याद आ गयी।
जिन्होंने वादे किये हर वक़्त साथ देने के,मारे वक़्त वो उस वक़्त दिखाए नहीं दिए ।
ज़माने कि शोर से दूर वो जो तेरे घर हैँ मुझे वहां सुकून मिलता हैँजैसे दरिया के नाविक को शीतल चांदनी से बिछे तालाब मे आराम मिलता हैँ
सब कुछ सब के मुकद्दर मे नहीं होता हैँ कुछ कि झोली खालीपन से भरी होती हैँ
खुद ही बाँट लिया खुद को इतना लोगो मे, कि खुद ही ना बच्चे खुदके लिए
एक मोहब्बत सबब-ए-मशरूफियत ख़तम हो गयी दोनों फुरसत की तलाश में थे और श्याम ढल गयी सबब-ए-मशरूफियत – Reason of Busyness/Due to Lack of time
कुछ बोलकर ना बोलिए जब बोलना व्यर्थ है कुछ सुनकर कुछ समझिए नही फिर बोलना व्यर्थ है
हमको इतना सोचना पड़ता है अब लिखने में की थक जाती हैं उंगलियां लिखा मिटने में
मिलता है खैरात में यहां दाना-पानी मिलता नहीं खर्च होने पे भी एक दिल-जानी